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सागर हो तो / रमेश रंजक
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सागर हो तो खुली भुजाओं का सत्कार करो
मेरे नमन, गीत हो जाएँ इतना प्यार करो
कितने सपनों से चौखट पर
मन का दिया धरा है
जीवन भर तक ज्योति जलेगी
इतना स्नेह भरा है
मेरे दीप-दान के दिन को तुम त्योहार करो
स्नेह बाढ़ के जल-सा उतरे
ऐसा कभी हुआ है ?
अगर स्नेह बिरवा है तो
मन उपवन का महुआ है
स्नेह, मधुर फलदायक इसको अंगीकार करो
भीतर की दीवारें टूटें
बाहर की चट्टानें
कजरीली आँखें पहनाएँ
गजरीली मुस्कानें
आँसू को उदार आँचल का साझीदार करो