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साथी मैं अब तक सोया था / रणजीत
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अधरों पर लेकर मधुर अधर
पलकों में प्रिय के सपने भर
रजनी को जाने देकर भी,
साथी मैंने क्या खोया था?
साथी मैं अब तक सोया था।
जल्दी उठता तो क्या पाता?
हाँ खोने पर कुछ पछताता
सूरज की तीखी किरणों में,
जिन्हें रात भर सँजोया था
साथी मैं अब तक सोया था।
अंत नहीं था अच्छा साथी
रजनी के उन सपनों का भी
प्रिय तेरे आँसू थे स्वप्निल,
पर मैं तो सचमुच रोया था
साथी मैं अब तक सोया था।
अब मैंने यह जाना उठकर
रजनी में जो बहा निरंतर
अपने उस खारे पानी से,
मैंने अपना मुँह धोया था
साथी मैं अब तक सोया था।