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साधु न चले जमात / कुमार मुकुल

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ऊँटों पर अन्न की बोरियां लादे
जमात में आए हैं साधु
आओ बेटा देखों उूंट साधु देखो
संकटापन्न प्रजाति है यह
बिहू-बिरहोरों सी
चीते और लायगर की तरह
गायब हो जाएंगे ये भी

एअर इंडिया के प्रतीकों में
जैसे शेष हैं महाराजा
रानयिां म्यूजियमों में
यूं ही साधु भी रह जाएंगे स्मृतियों में हमारी

नगर का संकट दूर करने
आये हैं साधु
संकट रह जाएंगे ज्यों के त्यों
और गायब हो जाएंगे साधु
यज्ञ से उठते धुएं की तरह

पहले रक्षा करते थे राम-लक्ष्मण यज्ञों की
आज राम-लक्ष्मण की प्राण-प्रतिष्ठा के लिए
यज्ञ कर रहे साधु
साधु जो पहले रह लेते थे जंगलों में
जहां आज रह रहे हैं उग्रवादी
वहां से बहरा गए हैं साधु
और घूम रहे हैं नगरों में जट्ट के जट्ट।

1966