भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
साधो मग डगमग पग / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
Kavita Kosh से
साधो मग डगमग पग,
तमस्तरण जागे जग।
शाप-शयन सो-सोकर,
हुए शीर्ण खो-खोकर,
अनवलाप रो-रोकर
हुए चपल छलकर ठग।
खोलो जीवन बन्धन,
तोलो अनमोल नयन,
प्राणों के पथ पावन,
रँगो रेणु के रँग रग।