सारी गरल स्वयं पी जाऊँ / राजेश गोयल
अमृत मिले मुझको सब बाँटूं, सारा गरल स्वयं भी जांऊ।
बीत गया  मधुमास कभी का,  मैं बासन्ती  गीत  सुनाऊँ॥
उसके मद में बहता था,
जिसको अपना कहता था।
सर्वस्व लुटा डाला अपना,
जीवन कोष मिटा अपना॥
खुशी  मिले  मुझको  सब बाँटूं सारा दर्द स्वयं पी जाऊँ।
अमृत मिले मुझको सब बाँटूं, सारा गरल स्वयं भी जांऊ॥
माना  पैर नही अब  बढते,
और प्यास से प्राण तड़पते।
और मिट गया चलते-चलते,
मंजिल पथ तय करते-करते
छांव  मिले  मुझको सब  बाँटूं  सारी तपन  स्वयं पी जाऊँ।
अमृत मिले मुझको सब बाँटूं, सारा गरल स्वयं भी जांऊ॥
रोदन  के   पीछे  गायन,
प्रकृति   का  यही  नियम।
यदि   मेरी तुम हार चाहते,
मुझ पर तुम अधिकार चाहते॥
उजास  मिले  मुझको सब  बाँटूं,  सारी रात  स्वयं पी जाऊँ।
अमृत मिले मुझको सब बाँटूं, सारा गरल स्वयं भी जाऊँ॥
	
	