सारे शहर में आपसा कोई नहीं / आनंद बख़्शी
र: सारे शहर में आपसा कोई नहीं, कोई नहीं
आ: सच
र: सारे शहर में...
आ: यही सोचकर रात भर मैं सोई नहीं, सोई नहीं
र: सारे शहर में ...
र: मेरा दिल जिसपे फ़िदा है वो दिलबर वो महबूब हो तुम
आ: थोड़े से तुम हो झूठे आदमी बहुत ख़ूब हो तुम
र: ऐ हसीना बड़ी ख़ूबसूरत हो तुम
मुस्कराती हुई कोई मूरत हो तुम
आ: ऐ जान-ए-जाँ खोए हो कहाँ
कोई तुम्हारी चीज़ तो खोई नहीं, खोई नहीं
र: तुमको मेरी वफ़ा पे जाने क्या-क्या ग़ुमाँ हो रहे हैं
आ: कितना भी तुम छुपाओ अफ़साने बयाँ हो रहे हैं
र: इश्क़ करता हूँ आशिक़ मेरा नाम है
आ: आह आशिक़ ह ह ह ह
र: इश्क़ करता हूँ आशिक़ मेरा नाम है
ऐश करना मेरी जाँ मेरा काम है
आ: ऐसे भी हो तुम वैसे भी हो तुम जैसे भी हो
हमको शिक़ायत आपसे कोई नहीं, कोई नहीं
र: सारे शहर में...
र आ: सारे शहर में...