Last modified on 23 अक्टूबर 2013, at 16:27

सार्थक सा / नीरजा हेमेन्द्र

छोटा-सा बच्चा
स्वच्छ, सपनीली आँखें
जिनमें समाहित होना चाहती है
सम्पूर्ण सृष्टि
जिसके हाथ स्पर्श करना चाहतें है
दिनकर से स्फुटित होतीं
 उज्ज्वल किरणों को
उसके पग नाप लेना चाहतें हैं/ नभ
हृदय से करूणामयी भावनायें
छलकना चाहती हैं चहुँदिस
स्ंवेदनाओं से ओत- प्रोत
इच्छायें भर कर
वह निर्दिष्ट लक्ष्य की ओर
अग्रसर होता है प्रतिपल
मानव और मानवता को सार्थक करता हुआ
छोटा-सा
उज्ज्वल-सा बच्चा
बढ़ता जा रहा है
विकास के सोपानों पर
चढ़ता जा रहा है स्वप्निल ऊँचाईयों पर
साथक-सा बच्चा
अपने नाम के अनुरूप
सार्थक करता जा रहा है
प्रतिपल-प्रतिदिन।