भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सावन / शमशेर बहादुर सिंह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैली, हाथ की धुली खादी -
सा है
आसमान।
जो बादल का पर्दा है वह मटियाला धुँधला-धुँधला
एक-सार फैला है लगभग :
कहीं-कहीं तो जैसे हलका नील दिया हो।
उसकी हलकी-हलकी नीली झाँइयाँ
मिटती बनती बहती चलती हैं। उस
धूमिल अँगनारे के पीछे, वह
मौन गुलाबी झलक
एकाएक उभरकर ठहरी, फिर मद्धिम होकर मिट गयी
जैसे घोल गया हो कोई गँदले जल में
अपने हलकी- मेंहदीवाले हाथ।


मैली मटियाली मिट्टी की चाक
भीगी है पूरब में
...सारे आसमान में।
नीली छाया उसकी चमक रही है
जैसे गीली रेत
(यह जोलाई की पंद्रह तारीख है
बादल का है राज)
- या जैसे, उस फाख्ताम के बाजू के अंदर का रोआँ
कोमल उजला नीला
(कितना स्वाच्छ !)
जिसको उस शाम
हमने मारा था !

X

ये नीले होंट
जो शाम का पूरब हैं आज
क्याा कहते हैं?
सावन की पलकें क्यों
भारी होती जाती है? यह मौन
टंकाऽर
जो क्षितिज-भौंह में काँपती-सी है
दहला दहला देती मेरा हृदय।
वह
मोतियों की लूट... कहाँ गयी वह हँसी?
जहाँ जमीन और आसमान मिल रहे हैं
वह भौंह

काँप रही है।
सावन आया है :
खूब समझता हूँ मैं
सावन की ये पलकें
मूँद रही हैं मुझको।

X X

देखो, रात
बिछलन से भरी हुई है
(तारे जुगनू होने चले गये हैं
चाँद, चाँद-सा दिल में है, बस
दिल, कि बहकती हुई रात है...)
यह रात फिसलन से भरी हुई है।

हाँ,
शर्माओ न मानी में!
तुम लफ्ज नहीं हो; न
कठिन अर्थ हो कोई!
तुम छंद की लय भी हो अगर,
पर्दा हो (मान लिया!)
तुम
गीत खुले हुए हो, वही
जो मैंने
कल रात को गलियों में
गाया था
(...काली उन कीचड़ से भरी हुई, तनहा गलियों में!)
शर्माओ न धड़कन की तरह
दिल में! तुम तो
धड़कन का इलाज हो!
तुम तो हो महज अता-पता मेरा!
अरे
वह नाम कहाँ हो
जो बूझ लिये जाओ! शर्माओ मत।

ओ शौक के परवानो
जरा ठहरो
यह शमा नहीं है।
यह दाग हैं सिर्फ
यादों की शाम है
मेरे चिलमन में...
जरा ठहरो।

सावन है कि फानूस
इक बूँद लहू का ? ओ
शौक के परवानो,
यहाँ आग नहीं है, तरी है।
जरा ठहरो।

सावन की घटा है
हिलता हुआ फानूस आकाश।
तुम कहाँ हो? ये घटा...
नाच रही है!

यह आसमान
चूम रहा है मेरी चौखट।
मैं चाँद और सूरज को निकालूँ
आल्माारी में रखे हुए एलबम से।
- तुम आाअे न!
तुम कहाँ हो? ये घटा... !

परवानो,
तुम पर यहीं रख जाओ
औ रेंग जाओ
ताकि सनद रहे और
वक्त पे काम...
ये घटा ...नाच रही है।
तुम कहाँ हो?
मैं खुद तो नही
ये खामोश
सुलगता हुआ पहरा -
ये फानूस?
तुम कहाँ हो? ...यह घटा नाच रही है।

तुम एक सवाल हो
मामूली- सा आज
यह सावन
क्योंव आया है?
यह सावन क्योंो आया है?
तुम एक सवाल की हद हो,
तुम एक सवाल की हद हो
मेरे लिए,
मेरे लिए -
यह सावन
क्योंव छाया?
- - यह सावन
मेरी उमीदों की साँझ पर
आज क्यों छाया?
यह एक संदेस
झलका जो -
कहाँ से?
तुम वह हो।
आज मेरे लिए तुम
उसकी हद हो।
उस बात की हद हो
जो मेरे लिए हो- तुम
वह मेरी
हद हो
तुम,
तुम मेरे लिए
मेरी हद हो मेरी हद हो
तुम
मेरे
लिए...