भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सिर्फ मौन की लिपि है यह / आशुतोष दुबे
Kavita Kosh से
इबारत पूरी हो जाने के बाद भी
शेष है पँक्ति
उसमें अब अक्षर नहीं होंगे
कुछ बिन्दु होंगे.....
डगमगाते- लड़खड़ाते
वे पूर्ण विराम की खोज में हैं
हर बिन्दु का अपना अर्थ
अपनी प्रतीक्षा, अपनी पुकार
अक्षरों की इबारत के बाद और उसके बावजूद
सिर्फ मौन की लिपि है यह
ओझल हो जाएगी
जादुई स्लेट पर
देखते – देखते.