भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सिलसिला रखिए / अभिज्ञात
Kavita Kosh से
बारहा तोहमतें गिला रखिए
आप हमसे ये सिलसिला रखिए
लूटने वाला हँसी है इतना
जाँ से जाने का हौसला रखिए
दिल की खिड़की अगर खुली हो तो
दिल के चारों तरफ़ किला रखिए
हमको देना है बहुत कुछ लेकिन
क्या बताएँ कि आप क्या रखिए
और क्या आजमाइशें होंगी
पास आकर भी फ़ासला रखिए
फिर भी तनहाइयाँ सताएँगी
आप चाहे तो काफ़िला रखिए