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सीधी-सादी बात इकहरी / विज्ञान व्रत

सीधी सादी बात इकहरी।
हम क्‍या जाने लहजा शहरी।

एक सभ्‍यता गूंगी बहरी
आकर मेरी बस्‍ती ठहरी।

जबसे बैठा बाहर प्रहरी
और डरी है घर की देहरी।

मैदानों में सिर्फ कटहरी
रातों उडकर थकी टिटहरी।

कौन दिखाता ख्‍वाब सुनहरी
अब तक जिंदा बूढी महरी।

जाने किसकी साजिश गहरी
मुझमें लगती रोज कचहरी।

सर पर ठहरी भरी दुपहरी
हाथ न आये छांव गिलहरी।