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सुखद / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
					
										
					
					
सहधर्मी / सहकर्मी
										
										
					
					
					खोज निकाले हैं
दूर - दूर से 
आस - पास से
और जुड़ गया है
अंग - अंग
सहज
किन्तु / रहस्यपूर्ण ढंग से
अटूट तारों से, 
चारों छोरों से
पक्के डोरों से! 
अब कहाँ अकेला हूँ ? 
कितना विस्तृत हो गया अचानक
परिवार आज मेरा यह! 
जाते - जाते 
कैसे बरस पड़ा झर - झर
विशुध्द प्यार घनेरा यह! 
नहलाता आत्मा को
गहरे - गहरे! 
लहराता मन का
रिक्त सरोवर 
ओर - छोर
भरे - भरे! 
	
	