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सुख का आँचल गीला है / आर्य हरीश कोशलपुरी
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सुख का आँचल गीला है
दुख कैसा रंगीला है
दो एक चेहरा ताज़ा पर
ज़्यादातर तो पीला है
लूटो पाटो खुल करके
यह शासन की लीला है
प्यासे प्यासे रहते हो
क्यूँ अंदर रेतीला है
तुम पाकीज़ा पावन हो
केवल पापिन शीला है
कैसे भी हो काटो तुम
जब तक सिस्टम ढीला है