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सुधार / नरेश अग्रवाल
Kavita Kosh से
मनुष्य का स्वभाव अपना-अपना
सुधारा नहीं जा सकता उसे
निचोड़ा जरूर जा सकता है रस उनका
जो हर दिन पैदा होता है उनमें
और इसी रस के कारण
आदर पाते हैं गुलाब के फूल
और दी जाती है जो खाद
ध्यान रखा जाता है
पड़े जड़ों के आस-पास ही
वरन् सारा श्रम बेकार
इन फूलों के रंग और भव्यता को देखकर
हो जाता है अंदाज
अब इनमें सुधार की आवश्यकता नहीं ।