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सुनकर होगा अचरज भारी / हरिवंशराय बच्चन

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सुनकर होगा अचरज भारी!

दूब नहीं जमती पत्थर पर,
देख चुकी इसको दुनिया भर,
कठिन सत्य पर लगा रहा हूँ सपनों की फुलवारी!
सुनकर होगा अचरज भारी!

गूँज मिटेगा क्षण भर कण में,
गायन मेरा, निश्चय मन में,
फिर भी गायक ही बनने की कठिन साधना सारी!
सुनकर होगा अचरज भारी!

कौन देवता? नहीं जानता,
कुछ फल होगा, नहीं मानता,
बलि के योग्य बनूँ, इसकी मैं करता हूँ तैयारी!
सुनकर होगा अचरज भारी!