सुना न देना यूँ ही कोई फ़ैसला दिल का / सुरेश चन्द्र शौक़
सुना न देना यूँ ही कोई फ़ैसला दिल का
ख़याल रखना कि ये है मुआमला दिल का
पलों में क्या कभी टूटा है राबिता<ref>सम्बन्ध</ref> दिल का
बड़ा दराज़<ref>लम्बा</ref> है प्यारे ये सिलसिला दिल का
तू वो न देख दिखाती है अक़्स<ref>प्रतिबिम्ब</ref> जो दुनिया
तू देख वो जो दिखाता है आइना<ref>दर्पण</ref> दिल का
अगर्चे बारहा<ref>प्राय:</ref> नुक़्सान ही उठाया है
किया है मैंने हमेशा मगर कहा दिल का
तू तंगदिल है तो किस काम की तिरी दौलत
अमीर अस्ल में वो है जो है बड़ा दिल का
सहीफ़ा<ref>धर्म-ग्रंथ</ref> पढ़ते रहे दिल का उम्र भर लेकिन
हम इसपे भी न समझ पाए फ़ल्सफ़ा<ref>दर्शन ,फिलॉसफ़ी</ref> दिल का
भटकता फिरता हूँ अपनी तलाश में हरदम
कि इब्तिदा<ref>प्रारम्भ</ref> से ही है रंग जोगिया दिल का
मेरी हयात<ref>जीवन,ज़िन्दगी</ref> मुन्नवर<ref>प्रकाशमान</ref> है इसलिए ऐ ‘शौक़’
जलाये रखता हूँ दिन रात मैं दिया दिल का