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सुनो तो, सजनी / कुमार रवींद्र

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सुनो तो, सजनी
गा रही बरखा बिहारी के नये दोहे
 
कोर्स में हमने पढ़े थे
ये नहीं वे
खोजकर लाई इन्हें
बरखा कहीं से
 
गाओ तुम भी
साँस भीगी उसी सुर की बाट है जोहे
 
लॉन पर मोती बिछे हैं
इधर बाहर
हँस रहा चंपा
उन्हें नीचे गिराकर
 
लड़ी है लटकी
इन्द्रधनुषी डोर में हैं वे गये पोहे
 
एक धुन मीठी बसी जो
देह में है
उसी की तो लय, सखी
इस मेंह में है
 
सुर वही हों
तान होवे सँग तुम्हारी - सृष्टि भी मोहे