भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सुन्नर जिनगी / अरुण हरलीवाल
Kavita Kosh से
आवइ जा, हो सखिया!
कि गावइ जा, हो सखिया!
रंगऽ में रंगऽ मिलावइ जा, हो सखिया!
उरऽ से उरऽ मिले,
सुरऽ से सुरऽ मिले।
तालऽ से तालऽ मिलावइ जा, हो सखिया!
सुन्नर हइ जिनगी,
सुन्नर हइ दुनिया।
सुन्नर अउर बनावइ जा, हो सखिया!