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सुरक्षा-2 / अजित कुमार
Kavita Kosh से
दीवारें उस दुर्ग की थीं
रंगीन और चिकनी
संगमरमरी ऐसी कि
निगाह डालो तो फिसले ।
मेरी प्रिया थी सुरक्षित
उसी दुर्ग के भीतर,
लहँगे में सिमटी,
घूँघट के भीतर से
टोह लेती, चौकन्नी...
खिलखिलाकर मैं हँस पड़ा-
ओहो, मेरी प्रिया घोंघी है,
गूँगी होने के अलावा !