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सुरमई शाम ढलने को है / राजमूर्ति ‘सौरभ’
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सुरमई शाम ढलने को है
चाँद बिल्कुल निकलने को है
फ़ोन करनेको मत भूलना
जाओ अब,ट्रेन चलने को है
बाँह मेरी तू अब थामले
पाँव एकदम फिसलने को है
जानेवाला चला ही गया
अबतो बस हाथ मलने को है
आग कोई लगाकर गया
उम्रभर कोई जलने को है
छँट गये मेघ बूँदें थमीं
धूप शायद निकलने को है
इसके लब कँपकँपाने लगे
अब ये पत्थर पिघलने को है