Last modified on 25 जुलाई 2020, at 20:02

सुरा पी थी मैंने दिन चार / हरिवंशराय बच्चन

सुरा पी थी मैंने दिन चार
उठा था इतने से ही ऊब,
नहीं रुचि ऐसी मुझको प्राप्‍त
सकूँ सब दिन मधुता में डूब,

हलाहल से की है पहचान,
लिया उसका आकर्षण मान,
मगर उसका भी करके पान
चाहता हूँ मैं जीवन-दान!