भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सूरज-८ / ओम पुरोहित ‘कागद’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आज था व्रत
सूरज रोटे का !

सूरज ने झांका
घरों में
कोई तो सुहागिन
निहारेगी मुझे
रोटी के सुराख से
परन्तु
न टूटा संन्नाटा
न सुहागिने थीं
न था घर में आटा !

भरे कंठ
सांझ ढ़ले
स्वयंमेव छिप गया सूरज !

अनुवाद-अंकिता पुरोहित "कागदांश"