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सूरज आज गेरग्यौ घर में / मंगत बादल
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सूरज आज गेरग्यौ घर में, 
अँधारै री डाक ।
बीज्या आम दोसदियां
कीं नै ऊगियाया आक ।।
पड़ग्या   क्यूं   कमजोर,
ऊजळा  आखर प्रीत रा ?
फिरै भटकता कजळी बन में,
मिरगा   गीत     रा  ।
ढूंढै  कांई चितराम आज वा 
अर्जुन वाळी आँख ?
मन रो सुवटो किण विध उडसी,
किणी कतर दी पाँख ।
अै दिवलै रा बोपारी कुण,
किण  देसां  सूं    आया ?
गळी- गळी में बेचै सपनां,
लेवै      लोग    लुगायां ।
काग निमोळी खायां जावै,
छोड छुआरा दाख ।
बीच बजारां खड़ो कबीरो, 
हाटां बिकगी साख ।
लाम्बी ताण रुखाळा सोग्या,
खेत      जीमगी    बाड़ ।
सूंई  साँझ में गुवाड़ बिचाळै,
कुण रोपी   है       राड़ ?
लिख्या जिका पानां माथै म्हे, 
बण्या भाग रा आँक ।
माँदी  पड़गी  आँच, 
अँगारां  ऊपर आगी राख ।
 
	
	

