नीले इस ताल पर
झूल गया सूर्यमुखी फूल।
उलझी है एक याद
बरगद की डाल पर।
जन्मीं फसलें कितनी बार
कितने विषयों की यह चांदनी निचुड गई।
वह नंगे पांवों से अंकित पगडंडी
घने-घने झाडों से पुर गई
लहरों के लेख-चित्र
चुटकी भर झरे बौर
और क्या चढाऊं
इस पूजा के थाल पर।
अब नहीं बंधेंगे वे बांहों के सेतु कभी
केशों के केतु नहीं फहरेंगे।
ध्वनियों में दौडते हुए वे रथ
पीपल की छांह नहीं ठहरेंगे।
इस टूटी खामोशी में फिर से
रख दो यह
गरम-गरम फूल बुझे गाल पर
ठंडे इस भाल पर।