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सृजन का स्वर-1 / विनोद शर्मा

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अमरीकी कवि: ‘जां स्टार अण्टरमेयेर’ की कविता: ‘सृजन का शब्द’ की पैरोडी। संदर्भ: भारतीय ज्ञानपीठ, काशी द्वारा 1960 में प्रकाशित कविता-संग्रह देशांतर, अनुवाद एवं संकलन: डॉ. धर्मवीर भारती)

आरम्भ में केवल ध्वनि थी
किन्तु उसकी सार्थकता थी स्वर बनने में

कि वह सुनी जाए
मौन को टूटना अनिवार्य था
ध्वनि को सुना जाना था

ताकि प्रलय का अराजक तिमिर
व्यवस्थित उजियाले में
रूपांतरित हो

ताकि शोर, धमाकों, विस्फोटों,
चीखों, अट्टहासों से त्रस्त यह दुनिया
डूब जाए जसुमति मय्या की लोरी में
ध्वनि का सुना जाना अनिवार्य था
आदम के दिल की धड़कनों
और इवा की मुक्त वाणी की प्रतिष्ठा के लिए
ध्वनि को सुना जाना था।

चूंकि ध्वनि कभी नष्ट नहीं होती
और मनुष्य की अभिव्यक्ति के माध्यम
‘शब्द’ के, मनुष्य के मुख से उसके कानों तक
पहुंचने का माध्यम है ध्वनि
अतः आज के लिए भी ध्वनि है
और ध्वनि का सुना जाना अनिवार्य है।