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सेमल का फूल / रंजना जायसवाल
Kavita Kosh से
चैत के महीने में
बिखरे घमाते
सेमल के फूल
अलसाये उनींदे
फिर भी मुस्कुराते
सेमल के फूल
लाल इतने
मानो
गोरी के गालों
पर उतरा रंग
नवविवाहित की हथेली
पर लिखा
प्यार का कोई छंद
पश्चिम में डूबता
दिन का अवसान
मानो दूर कहीं
थक कर
फागुन करता आराम
सड़क की
पथरीली धूप में
बिछा अपनों के इंतज़ार में
मानो खोली हो आँखे
किसी नवजात ने
सफेद धुंआ बन जाने से पहले
वह जी लेना चाहता हो हर रंग
शायद इसलिए समेट लेता है
वह बादलों को अपने आगोश में
गाड़ियों का कोलाहल
तेजी से गुजरते
राहगीरों का हुजूम
भागती जिंदगियाँ
फिर भी क्षण भर
रुकती,तकती
भरती उस रंग को
अपनी आँखों में
और बढ़ जाती
अपनी मंज़िल की ओर
और रह जाता
बस सेमल का फूल