सेमेस्टर के पिंजरे में.. / शुभम श्री
हम भाषाओं का उद्भव पढ़ना शुरू करते हैं
और
सोचते हैं
जान जाएँगे एक दिन
अपनी भाषाओँ के अतीत का रहस्य
'पाठ' और 'संरचना' से लदे
'हेप' लेक्चर सुनते हैं
कि इतिहास क्या है
वह नहीं है जो हम सोचते हैं
वह है जो टीचर ने बताया है
चौदहवीं सदी की कविता पढ़ते-पढ़ते
देखते हैं क्लास के लडकों का चेहरा
जो कैरियर की चिन्ता के बावजूद खिल जाता है
विद्यापति की व्याख्या पर
इतना सब करते हुए उम्मीद रखते हैं कि
बहुत-बहुत रचनात्मक हो जाएँगे हम एक दिन
परीक्षाओं और टर्म पेपरों से घिरे हम
कितने भोलेपन से गढ़ लेते हैं
एक ख़ूबसूरत झूठ
जबकि हमें मालूम है
हर छोटा दिमाग़ यू०जी०सी० और सिविल्स की चिन्ता में क़ैद है
और बड़ा दिमाग़ कई-कई चिन्ताओं में !
देश के एक उन्मुक्त विश्वविद्यालय में
हम साहित्य पढनेवाले पालतू जानवर हैं
हमारे और आसमान के दरम्यान है
सेमेस्टर का मजबूत पिंजरा...