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सेल्समेन / नरेश अग्रवाल
Kavita Kosh से
शंकरा दूर से आया है
और फिर दूर चला जाएगा
इसलिए तेज चलता है, दूर तक जाता है
सभी पात्रों को टटोलता है,
कौन सा उसके लिए खाली है
नहीं तो चीजों को इधर-उधर कर जगह बनाता है,
फिर उनमें अपना सामान भरता है
और बस यूं ही नहीं, नाम मात्र के लिए
बल्कि दिखाता है कार्यान्वित करके
कि वे कितने उपयोगी हैं उनके लिए
उसे अपनी जानकारियां देने में मजा आता है
वह मानता है इससे लोग खुश होते हैं,
यह ग्राहकों को सलामी देने का उसका तरीका है।
इस तरह से संबंध बनाते हुए
वह आगे बढ़ता जाता है,
दूरियां खत्म नहीं होती कभी भी उसके लिए
ना ही थकते हैं उसके पांव।