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सै’र / राजू सारसर ‘राज’
Kavita Kosh से
स्हैर री
संवेदणा नैं खाग्यौ
रोजीना रो
बधतोड़ौ उणरो ई कद
आभै साम्हीं
ऊभी अटार्यां
अैक दजै रा
मूंडा जोवै
बोल पण
पाटै नीं
सडकां लीलगी
माटी री सौरम
घर बणग्या
कैदखाना मिनखां सारू
हेत रा तारां नैं
निगळग्यो
बेतारां रो अंतरजाळ
अर लोग ढूंढता फिरै’क
कुणसी हाट माथै हांसी
मिलसी।