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सोचना होगा नया / प्रेमलता त्रिपाठी
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ज्ञान का उपहास क्यों हो सोचना होगा नया।
है कठिन क्यों वेदना कुछ देखना होगा नया।
आरसी कंगन बना पर हाथ तो कटते गये,
भ्रूण की हत्या नहो अब रोकना होगा नया।
झूठ के भी पाँव होते सच यहाँ हारा कहें,
न्याय पाने की डगर फिर खोजना होगा नया।
रक्त के प्यासे बने छिप भेड़िये फिरते जहाँ,
खोजकर दुष्कर्मियों को काटना होगा नया।
पट रहें हैं धुंध में शोभा हरित अब कुंज की
प्राण घाती धुंध को फिर छाँटना होगा नया।
दौड़ती शैली नगर की बैठ चिंतन कब करें,
सोच यह हमको हृदय में धारना होगा नया।