सोच लेतीं हैं औरतें / अनुराधा ओस
सोच लेतीं हैं औरतें
एक साथ कई बातें
बैठकर किसी सभा या मंच पर
उस समय भी सोच सकतीं हैं
शाम को कौन-सी सब्जी पकानी है
घर पहुँच कर छीलने हैं मटर
अरे! अचार को
धूप लगाना था
कपड़े इस्तरी करने है
हाट से लानी हैं तरकारियाँ
रास्ते में किसी दुकान से
बच्चों के लिए
लेनी हैं टॉफियाँ
अरे! ये मैं कहाँ बैठकर सोच रही हूँ?
अभी तो रखने हैं अपने विचार
स्त्री सशक्तिकरण पर
अचानक चमकता मैसेज
जल्दी घर आने की कोशिश करना!
तुम तो कहकर गई थी आऊँगी जल्दी
रोटियाँ कौन बनाएगा?
ऐसे नहीं चलेगा
अक्षरों की गुर्राहट महसूस करती हैं
अचानक वह लिपटने लगती है
मैसेजों की जंजीरों में
लेकिन अपने सफल वक्तव्य की
तारीफ सुन खुश हो जाती हैं
थोड़ी देर ही सही भूल जातीं हैं
रोटी, तरकारी, अचार की बातें
थोड़ी देर ही सही जी लेती हैं
स्वयं को॥