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सोमारू के लिए / पूनम वासम

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दण्डकारण्य के बीहड़ जँगलों से,
एक बार फिर लिखूँगी मैं तुम्हें
सम्बोधित करते हुए प्रेमपत्र…
भले ही तुम सम्वाद न कर सको,
मेरे लिखे हुए शब्दों से !
फिर भी मैं लिखूँगी तुम्हें
घोटूल की मोटीयारिन की तरह,
प्रेम में सब कुछ अर्पण करने वाली
चेली बनकर ।

मैं लिखूँगी तुम्हें
गुण्डाधुर मानकर…
एक नई क्रान्ति की शुरुआत जानकर,
मान्दर की थाप, सल्फ़ी,
ताड़ी की मिठास पर थिरकते
तुम्हारे पाँवों की धूल को माथे पर लगाकर ।

मैं लिखूँगी तुम्हें प्रेम-पत्र…
बस्तर की गौरवशाली
इतिहास की पुर्नरावृति के नाम,
महाराज प्रवीरचन्द भँजदेव की
माई दन्तेश्वरी के प्रति
आस्था के नाम …

तुम्हें इन्द्रावती की सन्तान मानकर
ककसाड़ गेंड़ी की ताल पर…
संस्कृति, सभ्यता और परम्परा का
निर्वाह करने वाला सोमारू जानकर ।

मैं लिखूँगी तुम्हें प्रेम-पत्र…
लहूलुहान हो चुकी तुम्हारी आत्मा
तुम्हारे शरीर पर लगी चोटों के नाम ।

मैं सुन सकती हूँ तुम्हारी आवाज़
जो पुकारती है मुझे…
दण्डकारण्य के बीहड़ों से
चीख़-चीख़कर ।

सुनो…मैं जानती हूँ
तुम लौटकर ज़रूर आओगे,
जब पढ़ोगे गोंडी भाषा में लिखे
मेरे प्रेम-पत्र…
अपनी कोट की जेब से निकालकर
तब तुम देखना…
लहूलुहान हो चुकी बस्तर की भूमि पर
पलाश के सुर्ख़ लाल फूल
प्रेम बरसाने लगेंगे ।

हाँ, तब भी मैं लिखूँगी तुम्हें
प्रेम-पत्र…
बस्तर का आदिवासी सोमारू समझकर
क्योंकि मैं तुमसे प्रेम करती आई हूँ
युगोयुगान्तर से…
सच्चा प्रेम… मेरे सोमारू !