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सौंदर्य / मनोज शांडिल्य
Kavita Kosh से
दनदनाइत दौगल जा रहल
एहि रेलगाड़ीक खिड़की सँ
जखन तकैत छी बाहर
तँ अभरैत अछि
ई केहन अद्भुत दृश्य!
देखैत छी
बिहुँसैत गाछ-बिरीछ
लहलहाइत खेत -पथार
जमीन पर मजदूर
मजदूर मे जमीन
एतय नहि छै मनुक्खक भीड़
एतय जीबैत छैक मात्र सौंदर्य
मनुक्खक हेंजक संग
नहि दौगल रहैक सुंदरता शहरक दिस
नहि उपटल ओ अपन जड़ि सँ
नहि छोड़लक अपन डीह
महानगरक सिमानक पार
रेलगाड़ीक खिड़की दने पैसि
हमरा भरि पाँज पकड़ने अछि आइ
चौबीस कैरेटक सौंदर्य
अन्हार भ’ रहल छैक आब
डिब्बा मे जरि गेल छैक बत्ती
खिड़कीक शीशा मे देखैत छी अपन प्रतिबिम्ब
आइ सुन्दर लागि रहल छी हम!