भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
स्त्री को-1 / रंजना जायसवाल
Kavita Kosh से
उसे
खुद ही काटना होगा
गुलामी का सुनहरा जाल
जो बुना जा रहा है
मुक्ति के नाम
उसके चारों ओर।