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स्मृति / प्रवीन अग्रहरि
Kavita Kosh से
वो अक़्सर तालाब में हाथ डालकर
पानी उछाला करती थी।
एकबार उसके हाथ की रेखाएँ
उस तालाब में घुल गईं।
तालाब सूख गया...
बारिश का मौसम आया...
उसकी किस्मत अब पूरे शहर पर बरस रही है
और मैं
बालकनी से हाथ निकाल कर
पैबस्त कर लेना चाहता हूँ
उसके हाथ की रेखाएँ।