स्वतंत्रता दिवस / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
आज़ादी का पर्व, उचित है आज सगर्व मनाएँ हम।
भवन-भवन पर ध्वज लहरा कर गीत विजय के गाएँ हम॥
दीप जलाएँ, नैन मिलाएँ नभ के चाँद-सितरों से।
गूँज उठे धरती का कोना-कोना जय-जयकारों से॥
क्यों न हर्ष हो, जब खोया उत्कर्ष हमें फिर प्राप्त हुआ।
भगी दासता दूर, देश का सुयश विश्व में व्याप्त हुआ॥
पर केवल इससे करना होगा हमको सन्तोष नहीं।
तड़प रहे अरमान अभी हम रह सकते ख़ामोश नहीं॥
देख चमकता सूर्य गगन में, मन में अति उल्लास हुआ।
किन्तु धरा के प्रांगण में है अभी न पूर्ण प्रकाश हुआ॥
हुआ शुभागम हे बसन्त का, पर आ सकी बहार नहीं।
शुष्क लताओं में मधुरस का हुआ अभी संचार नहीं॥
सुमनावलियों के मुख पर है अभी मदिर मुस्कान कहाँ।
गुन-गुन गाते भँवरों को है मिला अभी रसपान कहाँ॥
अभी कंठ में कोकिल के है गूंजे स्वर संगीत नहीं।
अभी बिहंगों के कलरव में मादक मधुमय गीत नहीं॥
बापू के उस रामराज्य का स्वप्न अभी साकार कहाँ।
टूट सकी है दैन्य-दुर्ग की अभी अचल दीवार कहाँ॥
निकल सकी है नाव भँवर से किन्तु किनारा दूर अभी।
क़दम बढ़े हैं आगे कुछ पर लक्ष्य हमारा दूर अभी॥
पथ को ही मंजिल मत समझो और अभी बढ़ना होगा।
दीन-दुखी जर्जरित राष्ट्र का भाग्य स्वयं गढ़ना होगा॥
धीर वीर प्रहरी बन कर करना होगा परित्राण हमें।
अर्द्ध खिले इस उपवन का करना है नवनिर्माण हमें॥
निर्धनता की जंज़ीरों को जड़ से काट गिराना है।
भारत की इस पुण्यभूमि पर नूतन स्वर्ग रचाना है॥
स्नेह-सुधा का हर मानस में निर्मल स्रोत बहाना है।
हर मानव के मन में मानवता का भाव जगाना है॥
सुखी सभी हों, कृषक और श्रमजीवी जन को मान मिले।
उन्नत हों अभिशप्त दीन को वैभव का वरदान मिले॥
साम्य-सलिल की अनुपम धारा बहती विमल विशेष रहे।
शस्य-श्यामला भूमि सदा सम्पन्न हमारा देश रहे॥
स्वाधिकार को प्राप्त करें सब कोई कहीं अभाव न हो।
फूले-फले सुजीवन सबका रंच विषमता भाव न हो॥
व्रत लीें आज सभी मिल कर प्रण पूरा कर दिखलाएंगे।
पंचशील का पाठ पढ़ा कर जग को सुखी बनाएंगे॥