भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

स्वदेशी पुकार / रचना उनियाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

धरो शपथ तुम ऐ दीवानों, सदा स्वदेशी अपनाना है।
बाधाओं के हर पत्थर को, हटा विजय हमको पाना है।।

संख्या में असंख्य है यौवन,
आत्मसात साहस को कर लो,
वरण करो अब लघु उद्योगों
गाँव-शहर का मानस वर लो।
अथक परिश्रम के हर कण से, प्रगति धार को छलकाना है।
बाधाओं के हर पत्थर को, हटा विजय हमको पाना है।।

तन- मन से हम देसी प्राणी,
देश-वेश परिवेश सुहाना।
विगत काल की जंजीरों ने,
डाल दिया आघात पुराना।
त्यागो अब सारी कृत्रिमता, अपनी संस्कृति को गाना है।
बाधाओं के हर पत्थर को, हटा विजय हमको पाना है।।

पा जायेगी माता जीवन,
रूप देश का भी निखरेगा।
अपने दम खम से भारत का,
कोना -कोना भी चहकेगा।।
विकट काल की इस संध्या में, दीपक को पाठ पढ़ाना है।
बाधाओं के हर पत्थर को, हटा विजय हमको पाना है।।