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स्वदेश की आवश्यकता / हरिवंशराय बच्चन
Kavita Kosh से
हृदय भविष्य के सिंगार में लगे,
दिमाग़ जान ले अतीत की रगें,
नयन अतंद्र वर्तमान में जगें--
स्वदेश को सुजान एक चाहिए।
जिसे विलोक लोग जोश में भरें,
जिसे लिए जवान शान से बढ़ें,
जिसे लिये जिएं, जिसे लिये मरें,
स्वदेश को निशान एक चाहिए।
कि जो समस्त जाति की उभार हो,
कि जो समस्त जाति की पुकार हो,
कि जो समस्त जाति-कंठहार हो,
स्वदेश को ज़बान एक चाहिए।