भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
स्वर्णाक्षर / रश्मि रेखा
Kavita Kosh से
मेरी किताब पर
तुम्हारी लिखावट में लिखा मेरा नाम
अभी भी मेरे पास जगमगा रहा है
स्वर्णाक्षर में लिखा नाम
क्या ऐसा ही होता है
उमस भरी दुपहरी में
अचानक आई एक तेज बारिश की तरह
तुम्हारा ख़त
भिंगो गया मेरा पोर-पोर
किसी के साथ पानी में भींगना
क्या ऐसा ही होता हैं
आओ थोड़ी देर बैठे
थोड़ी बाते करे
थोड़ा समय गुजारे साथ-साथ
अपने अकेलेपन में डूबे-डूबे ही सही
लेकिन हमारे पास तो आकाश भर बाते है
कभी न ख़त्म होने बाले सिलसिले
किसी कथासरित्सागर की रचना
क्या ऐसे ही होती है