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स्वर भंग मधुर आवाज़ अभी / बाबा बैद्यनाथ झा
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स्वर भंग मधुर आवाज़ अभी
कुछ दीख रहे नाराज अभी
पहले न कभी भी ऐसे थे
है एक नया अंदाज़ अभी
क्यों आज उदासी है छाई
फिर आप बता दें राज़ अभी
वह धूर्त नहीं शर्मिन्दा है
जो त्याग चुका है लाज अभी
सब सैन्य दलों में जोश भरें
रण जीत सके जांबाज अभी
हैं गीत ग़ज़ल लिखते 'बाबा'
पर फक्र नहीं कुछ नाज़ नहीं