भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

स्वागत / महेन्द्र भटनागर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जूही मेरे आँगन में महकी,
रंग-बिरंगी आभा से लहकी !

चमकीले झबरीले कितने
इसके कोमल-कोमल किसलय,
है इसकी बाँहों में मृदुता
है इसकी आँखों में परिचय,

भोली-भोली गौरैया चहकी
लटपट मीठे बोलों में बहकी !

लम्बी लचकीली हरिआई
डालों डगमग-डगमग झूली,
पाया हो जैसे धन स्वर्गिक
कुछ-कुछ ऐसी हूली-फूली,

लगती है कितनी छकी-छकी
गह-गह गहनों-गहनों गहकी !

महकी, मेरे आँगन में महकी
जूही मेरे आँगन में महकी !

(पौत्री इरा के प्रति।)