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स्वागत / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
जूही मेरे आँगन में महकी,
रंग-बिरंगी आभा से लहकी !
चमकीले झबरीले कितने
इसके कोमल-कोमल किसलय,
है इसकी बाँहों में मृदुता
है इसकी आँखों में परिचय,
भोली-भोली गौरैया चहकी
लटपट मीठे बोलों में बहकी !
लम्बी लचकीली हरिआई
डालों डगमग-डगमग झूली,
पाया हो जैसे धन स्वर्गिक
कुछ-कुछ ऐसी हूली-फूली,
लगती है कितनी छकी-छकी
गह-गह गहनों-गहनों गहकी !
महकी, मेरे आँगन में महकी
जूही मेरे आँगन में महकी !
(पौत्री इरा के प्रति।)