वृक्ष से झड़ती पत्तियों को,
उससे जुदा होने का
अहसास होता होगा
उन मौन आँसुओं में,
यादों का बसेरा होगा
शायद ये जुदाई ही उन्हें सुखा देती है
समय के साथ उनका वजूद मिटा देती है
वृक्ष खड़ा सोचता होगा
कहाँ कमी रह गई
जो ये मुझसे अलग हो गई
किंतु नवीन कपोलों को पाकर
वह उन चरमराई पत्तियों की आवाज़
सुन पाता होगा
शायद ही उनसे दूरी का
अहसास उसे सताता होगा
वह सूखी पत्तियां वृक्ष से
दूर नहीं रह पाती
वहीं मिट्टी में मिलकर
वृक्ष को पोषित करती हैं
वो सब कुछ लौटा देना चाहती हैं
जो कभी इस वृक्ष से उसने पाया था
क्या इन नन्हीं पत्तियों का मन
इतना स्वाभिमानी होता है
जो इस विशाल वृक्ष को उसके
स्वार्थ का अहसास करवाती हैं