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स्याही ताल (कविता) / वीरेन डंगवाल
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मेरे मुंतजिर थे
रात के फैले हुए सियह बाजू
स्याह होंठ
थरथराते स्याह वक्ष
डबडबाता हुआ स्याह पेट
और जंघाएं स्याह
मैं नमक की खोज में निकला था
रात ने मुझे जा गिराया
स्याही के ताल में
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