भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हंसग्यो / मधु आचार्य 'आशावादी'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उण दिन
बो पैली बार मुळक्यो
जाणै आभै मांय
मोटो तीणो हुयग्यो
आज तांई
उणनै कदैई नीं आई हंसी
हरेक नै देखतो आंख्यां फाड़
पण खाली देखतो
कीं नीं बोलतो
पण आज तो गजब हुयग्यो
बो खाली देख्यो
अर हंसग्यो
म्हैं कनै पूग्यो तो देख्यो
बो काच साम्हीं ऊभो हो
उण मांय खुद नै ई देख ‘र
हंस रैयो हो।