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हममें पिता साँस लेते हैं / यश मालवीय
Kavita Kosh से
हममें पिता साँस लेते हैं
भँवर बीच कश्ती खेते हैं
हममें पिता साँस लेते हैं
जब पड़ते बीमार,
कभी हम
आँखें अपनी
हो जातीं नम
देते दुआ, दवा देते हैं
मौसम से,
मौसम सा छनते
यादों का
कनटोप पहनते
कल की उम्मीदें सेते हैं
सपने भले-भले
आते हैं
आती नींद,
चले आते हैं
खिल उठते, बेटी-बेटे हैं ।