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हमरा केकरो नै डऽर / श्रीस्नेही
Kavita Kosh से
भूतऽ के डऽर नै पिचाशऽ के डऽर,
एके लागै छै आदमी के डऽर,
आरो हमरा केकरो नै डऽर।
रातिये उठै छी कुल्ला करै छी।
घुप-चुप अँधरिया के साथें हँसै छी॥
जगथै नीचै लेॅ दौड़ै छेॅ घऽर,
एके लागै छै आदमी के डऽर,
आरो हमरा केकरो नै डऽर।
कामऽ पर जाय छी दिनभर कमाय छी।
आपनऽ मनऽ सें हाथ-गोड़ चलाय छी॥
तैयो तेॅ मालिकऽ के लातिये तऽर,
एकै लागै छै आदमी के डऽर,
आरो हमरा केकरो नै डऽर।
सिंह के डऽर नै बाघऽ के डऽर,
एके लागै छै आदमी के डऽर,
आरो हमरा केकरो नै डऽर
सबके सुनै छी सबके करै छी।
टोला समाजऽ के मुँहो जोगै छी॥
एथनौं पेॅ लोगें काटै छेॅ जऽड़,
एके लागै छै आदमी के डऽर,
आरो हमरा केकरो नै डऽर
आगिनी के डऽर नै पानी के डऽर,
एके लागै छै आदमी के डऽर,
आरो हमरा केकरो नै डऽर