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हमारी जान है घर पर / चन्द्रगत भारती
Kavita Kosh से
बिखरने से लगे हैं हम
बहुत ही बोझ है सर पर !
शहर तो आ गये लेकिन
हमारी जान है घर पर !
यहाँ पर भीड़ बेहद है
हमें बेचैन करती है !
तड़पते हैं यहाँ दिन भर
भ्रमित हर रैन करती है !
यहाँ पर अजनबी से हम
मगर पहचान है घर पर।
सच कहूं रोज ही सर से
गुजरता है यहाँ पानी !
यहाँ तन्हा हुए हैं हम
वहाँ तन्हा है दीवानी !
पड़े गुमनाम से होकर
हमारी शान है घर पर।
हवाओं तुम गुजरना तो
तमन्ना से जरा कहना !
उसे आएँगें हम मिलने
नहीं है दर्द अब सहना
अकेले हम रहें कैसे
वहाँ अरमान है घर पर।