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हमारे शब्द / महेश वर्मा
Kavita Kosh से
वे ज़्यादा से ज़्यादा पहुँचाना चाहते हैं आज का अगले दिन
देर रात छपते हैं अखबार
अभी इस वक्त
अख़बारी काग़ज़ पर धीमे धीमे सूख रहे होंगे
श्रद्धांजलि के वे शब्द
जो दोपहर हम अख़बार के दफ़्तर दे आये थे.
थोड़ा वे उन शब्दों से अलग थे जो वाकई हमने बोले थे उसी सुबह
छप के थोड़ा अलग वे लगते होंगे
कुछ और वे बदल चुके होंगे
जब हमसे मिलेंगे सुबह के उजाले में
चाय के साथ.