भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हम उन्हें वो हमें भुला बैठे / ख़ुमार बाराबंकवी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यदि इस वीडियो के साथ कोई समस्या है तो
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें

हम उन्हें वो हमें भुला बैठे
दो गुनहगार ज़हर खा बैठे

हाल-ऐ-ग़म कह-कह के ग़म बढ़ा बैठे
तीर मारे थे तीर खा बैठे

आंधियो जाओ अब आराम करो
हम ख़ुद अपना दिया बुझा बैठे

जी तो हल्का हुआ मगर यारो
रो के हम लुत्फ़-ऐ-गम बढ़ा बैठे

बेसहारों का हौसला ही क्या
घर में घबराए दर पे आ बैठे

जब से बिछड़े वो मुस्कुराए न हम
सब ने छेड़ा तो लब हिला बैठे

हम रहे मुब्तला-ऐ-दैर-ओ-हरम
वो दबे पाँव दिल में आ बैठे

उठ के इक बेवफ़ा ने दे दी जान
रह गए सारे बावफ़ा बैठे

हश्र का दिन है अभी दूर 'ख़ुमार'
आप क्यों जाहिदों में जा बैठे