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हम तुम बने रहें समपरिचित / रंजना वर्मा

हम तुम बने रहें समपरिचित एक ह्रदय की धड़कन जैसे
सम्बंधों की डोर बंधी तो जीवन दुस्तर हो जायेगा॥

अर्द्ध रात्रि जीवन कलरव में चातक यदि व्याकुल हो टेरे,
प्रत्युत्तर मत देना वरना मधु स्वर प्रस्तर हो जायेगा॥
जीवन दुस्तर हो जायेगा॥

जीवन के मरुथल मलयानिल
बना अतिथि आ गया अचानक,
सहला गया हृदय की वीणा
बिखरे राग धरा से नभ तक।

ऐसे में अनुराग पथिक यदि आ मन द्वार लगाये डेरा
हृदय धाम मत देना वरना सारा निज पर हो जाएगा।
जीवन दुस्तर हो जायेगा॥

मूक मुखर मानस घाटी में
खिलें प्रसून भावनाओं के,
परिचय सहता रहे थपेड़े
निशि दिन लहर कामनाओं के।

मृदुल स्मृति की उंगली थामे खड़ा निहारे प्रेम बटोही
पुतली पलंग बिछायी तो गति का स्वर मंथर हो जायेगा।
जीवन दुस्तर हो जायेगा॥